Thursday, November 11, 2010

दैनिक भास्कर के सम्पादकीय का पठनीयता अध्ययन

बदलते परिदृश्य में समाचारपत्रों की भाषा और साज-सज्जा से लेकर लोगों की रूचि तक बहुत से ऐसे तत्व है जिन्होंने समाचारपत्रों की पाठक संख्या को प्रभावित किया है। इसमें पठनीयता एक बडा कारण है जो किसी भी समाचार पत्र की पाठक व प्रसार संख्या को प्रभावित करने का कार्य करती है। पत्रकारिता के शोधकर्ताओं ने विश्लेषण कर पाया कि पठनीयता समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और किसी भी मुद्रित सामग्री के लिए आवश्यक पहलू है। ंमूल रूप से पठनीयता से तात्पर्य पठन योग्य सामग्री से है। गेटवेप्रैस के अनुसार पठनीयता वह ईकाई है जिसके आधार पर  विषयवस्तु को इस तरह से लिखा जाता है कि उसे आसनी से पढ़ा जा सके। किसी भी मुद्रित सामग्री की पठनीयता कई तत्वों से प्रभावित होती है ये केवल अक्षरों के साईज, काले व सफेद स्थान के अनुपात, शब्दों के बीच स्थान तक ही सीमित नहीं है। बेनटेंट(1972) के अनुसार पठनीयता मुद्रित सामग्री और पाठक वर्ग की समझ स्तर का सही तारतम्यता बैठने की कड़ी है। इस कार्य की सफलता का माप पाठक की विषय वस्तु की समझ पर निर्भर करता है।
 जनसंचार के विद्वान डोमनिक व रोजर्स केे अनुसार पठनीयता उन सभी तत्वों को योग और क्रियात्मकता है जो कि किसी मुद्रित सामग्री के अंश के पढे जाने की सफलता पर प्रभाव डालंे। सफलता के मापक पाठकों द्वारा उस पठन सामग्री को समझने और पढ़ने पर निर्भर करते हैं।अतः उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर पठनीयता कि पाठकों के विवरण ;आयुवर्ग, समझ के स्तर, पारिस्थितिक अनुभवद्ध के आधार पर पठनीय सामग्री को आसान इकाई में प्रस्तुत करना। दूसरा, मुद्रित सामग्री, कम से कम किसी एक निश्चित पाठक वर्ग के लिए पठनीय हो। तीसरा, विषय-वस्तु की पठनीयता की सफलता इस बात पर निर्भर करें कि उस  विषय-वस्तु का निश्चित पाठक वर्ग उक्त सामग्री को कितना समझ पाया है। विषयवस्तु के तत्वों का मापन पठनीयता सूत्रों द्वारा किया जाता । इन सूत्रों में प्रमुख मुख्य फ्लेश फार्मूला, फॉग इन्डैक्स, द क्लोजे  मैथड ,एडवर्ड फ्राई शामिल है। लेकिन ये सभी फार्मूले अंग्रेजी विषयवस्तु की पठनीयता मापन के हैं। प्रस्तुत शोध के लिए अंग्रेजी के फॉग इन्डैक्स को आधार मान कर हिन्दी की विषय वस्तु मापन के लिए सूत्र तैयार किया गया है।

  साहित्य अवलोकन

तहीरे-ए-रजे(1969-70) द्वारा एक अमेरिकन समाचार पत्र के शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के संस्करणोें का पठनीयता अध्ययन किया गया। निष्कर्ष में उन्होंने पाया कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की खबरों की पठनीयता में काफी अंतर था जबकि सम्पादकीय लेखों की पठनीयता एक जैसी थी। अतः ग्रामीण क्षेत्र के पाठकों के लिए समाचारपत्र पढने में अपेक्षाकृत अधिक कठिन थे। स्टेमलपल गियडा (1981)  ने ईरीच के अर्न्तगत  6 दैनिक समाचार पत्रोें के 21 विषयवस्तुओं का फलैश फार्मूला द्वारा पठनीयता अध्ययन किया जिसमें पाया कि अर्न्तराष्टीय खबरें पढने में कठिन थी। जबकि महिला संबंधी खबरें पढने में अपेक्षाकृत आसान थी। फरवरी 1995 में एनसीआरटी द्वारा अध्ययन किया गया जिसका उददेश्य प्राइमरी स्तर की पाठ्य पुस्तकों की पठनीयता का मूल्यांकन करना था, निष्कर्ष में पाया गया कि प्राइमरी स्तर की पुस्तकों की पठनीयता बिल्कुल उचित थी। 2005 में ईरीच के साथ मिलकर कई सारे अनुसंधान कर्ताओं ने पठनीयता संबंधी अध्ययन किए हैं। इस अध्ययन को आई आई लार्ज (1939), जीडी स्पेच (1953), डबल्यू बीईली (1969), जेआर बुरमूथ (1966) और हरीश जेकोबसन (1975 )ने इस विषय में 7 शोध अध्ययन किए हैं। (1953)में डबल्यू एल टेलर द्वारा पठनीयता के मापदंडो का एक व्यवहारिक रुप से आंकलन किया गया। इन शोधों के द्वारा पठनीयता के संबंध में इन प्रश्नों के उतर जानने की कोशिश की गईः- पठनीयता क्या है और इसे कैसे मापा जाए? पठनीयता पर शोध कार्य कितना सही है? इसकी सीमाएं क्या है?  योलेय (1975) ने ईबादन के सीनियर सैकेंडरी स्कूल के विद्यार्थियों द्वारा पढी जाने वाली पुस्तकों का अध्ययन किया और पाया कि उनका पठनीयता स्तर बहुत कम था। विद्यार्थी उन्हें भली प्रकार समझने में असमर्थ थे। बुरगून और विकिनसन ;2001 द्धने एक शोध अध्ययन किया जिसमें पाया कि समाचार पत्रों को अपनी प्रसार संख्या बढाने के लिए सही पठनीयता स्तर की आवश्यकता होती है। क्योंकि बडे वाक्य और कठिन शब्द विषयवस्तु को पढनें में बाधक होते है।

शोध उद्देश्य

1. दैनिक भास्कर के संपादकीय के पठनीयता ग्रेड का पता लगाना।
2. संपादकीय में प्रयुक्त औसतन शब्द संख्या, वाक्य की औसतन लंबाई, वाक्य में प्रयुक्त औसतन शब्द संख्या व औसतन कठिन शब्द संख्या का पता लगााना।

शोध विधि

प्रस्तुत शोध अध्ययन अंर्तवस्तु विश्लेषण के अंतर्गत पठनीयता सूत्र के आधार पर किया गया है। यह अन्वेषणात्मक अध्ययन है । इसके मापन सूत्र में सुधार की गुंजाइश हो सकती है।
इस शोध अध्ययन के अंर्तगत दैनिक भास्कर के अगस्त माह के संपादकीय पृष्ठ की पठनीतया का पता लगाया गया है। प्रस्तुत शोध में पठनीयता के इन तत्वों पर कार्य किया गया है- सपंादकीय की कुल शब्द संख्या, औसतन कुल वाक्य की संख्या,  वाक्य की औसतन शब्द संख्या, कठिन शब्द संख्या, वाक्य में औसतन कठिन शब्द संख्या, पठनीयता स्तर।
पठनीयता जांचने का तरीका
अंग्रेजी भाषा में पठनीयता जांचने के कई फार्मूले हैं, परंतु हिंदी के लिए कोई भी नहीं है। प्रस्तुत शोध अध्ययन हिंदी में है। इसलिए अंग्रेजी थ्वह पदकमग की तर्ज पर ये सूत्र हिंदी भाषा के लिए तैयार किया गया है।

कुल शब्द संख्या  = x
कुल वाक्य      = Y
वाक्य में औसतन शब्द संख्या =X/Y   (कुल शब्द संख्या /ध्कुल वाक्य) 
कुल कठिन शब्द =Z               (कुल कठिन शब्द /ध्कुल वाक्य)
औसतन कठिन शब्द=Z/Y
पठनीयता ग्रेड X/Y+Z/Y=R

1.यदि R 0 व 10 के बीच आता है तो विषय वस्तु पढ़ने में अति आसान है। यानि कि 0<R<10 है तो पठनीयता ग्रेड-1 स्तर की है और यह किसी भी साक्षर व्यक्ति द्वारा आसानी से पढ़ी जा सकती है।

2. यदि R 10 व 15 के बीच में आता है तो विषय वस्तु पढ़ने में आसान है। यानि कि 10<R<5 है तो पठनीयता ग्रेड-2 स्तर की है और यह बच्चों व टीनएजर्स के लिए अधिक पठनीय है।

3.यदि R 15 व 20 के बीच आता है तो विषय वस्तु पढ़ने में सामान्य है। यानि कि 15<R<20है तो पठनीयता ग्रेड-3 स्तर की है और यह उच्च शिक्षित लोगों के लिए सबसे अधिक पठनीय है।

4.यदि R 20 से 25 के बीच आता है तो विषय वस्तु पढ़ने में कठिन है। यानि कि 20<R<25है तो पठनीयता ग्रेड4 स्तर की है। और यह बुद्धिजीवी वर्ग के लिए सर्वाधिक पठनीय है।

5.यदि R 25 व 30 के बीच आता है तो विषय वस्तु पढ़ने में अति कठिन है तो पठनीयता ग्रेड-5 स्तर की है। और यह अति विद्वान वर्ग के लिए उपयुक्त  है।

6.यदि R 30 से उपर है तो विषय वस्तु पढ़ने में अत्यंत दुरूह है जो समझ से परे है।


 कठिन शब्दों का चयन

कठिन शब्दों का चयन एक कठिन कार्य है। कठिन शब्दों के विषय में हिंदी के कई विद्वानों से बात की गई। विद्वानों द्वारा दी गई बातचीत के आधार पर प्रस्तुत शोध में कठिन शब्दों का चयन तीन प्रकार से किया गया है।
1 जो शब्द देा यो दो अधिक वर्ण से बने हैं।
2 जो शब्द अचानक से देखने पर आम बोलचाल की भाषा का न लगे।
3 जो बहुप्रचलित न हों।

 आंकडों का विश्लेषण

    क्र0     दिनांक      कुलशब्द     कुल        वाक्य में     कठिन     वाक्य में       पठनीयता ग्रेड                           GRADE
                                संख्या      वाक्य    औसतन         शब्द      औसतन
                                                संख्या   शब्द संख्या   संख्या    कठिनशब्द  
                                                                                                     संख्या                                                                                                                                                                                                                                            

                                                                                                             

Monday, November 8, 2010

O my sweet “BACHPAN”


cute-baby
Mother’s lorry, Fathers’s glory

Grandma’s care, grandpa’ affection.

I got the love, full of perfection……

O my sweet BACHPAN”, plz come back.

With you, I want to go on jolly track

That was the time, I wanted to fly

But didn’t know the meaning of the sky.

My house went upside down on my cry.

Oh the time, No body scolded on my lie.

My stupid questions, made a person die.

But I still the apple of everyone’s eye.

Wow the time, everyone danced on my tear.

There was no study, I played without fear.

My meaningless words, made my parents cheer.

Ah! The sorrow, I lost the golden years……

Wednesday, November 3, 2010

हिंदी अपनाईये,मत शरमाईयें

आज के समय में भारत में हिंदी को भले ही यथोचित स्थान प्राप्त न हो लेकिन वैश्विक स्तर पर हिंदी का वर्चस्व लगातार बढता जा रहा है। हिंदी को विश्व की सर्वाधिक बोले जाने वाली दूसरी भाषा का गौरव प्राप्त है। सरकारी तंत्र द्वारा अंग्रेजी को व्यवसायिक भाषा का दर्जा देने के कारण लोग इसकी तरफ भाग रहे है और हिंदी की तरफ से विक्षिप्त हो रहे है। अंग्रेजी को भाषा के तौर पर सीखना सही है, लेकिन इसकी एवज में हिंदी को उपेक्षित करना ठीक नहीे। ये कहना है भारतीय विकास परिषद के क्षेत्रीय मंत्री रमेश गोयल का। पेशे से वकील गोयल, अपना सारा व्यवसायिक कार्य पिछले 35 वर्षाे से हिंदी भाषा में कर रहे है। वर्तमान में वे हरियाणा प्रादेशिक साहित्यक सम्मेलन के प्रंातीय उपाध्यक्ष है। रमेश हिंदी दिवस की पूर्व सन्धया पर सामुदायिक रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम हैलो सिरसा के माध्यम से श्रोताओं से रूबरू हुए। प्रस्तुत है कार्यक्रम संचालिका रचना सैनी के साथ उनकी बातचीत के कुछ अंशः


आपको  हिन्दी  भाषा में कार्य करने की प्रेरणा कहां से मिली ?
हरियाणा प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन 1967 में स्थापित हुआा था। उस समय बनारसी दास गुप्ता इसके अध्यक्ष थे । 1974 में इस सम्मेलन की शाखा सिरसा में स्थापित हुई । मैं तब से ही हिंदी भाषा से विशेष रूप से जुडा हूं। वैसे तो विद्यालय समय से ही मेरा  हिंदी  भाषा  के  प्रति  मेरा  खास  लगाव   था लेकिन हिंदी को व्यवसायिक तौर पर अपनाने का फैसला मैंने इस संगठन से जुडने के बाद लिया। शुरूआती दौर में काफी दिक्कतों का सामना करना पडा  लेकिन  प्रबल इच्छाशक्ति  और  दृढ निश्चय के बल पर आज मेरी पहचान मेरे नाम के बजाए हिंदी में कार्य करने वाले वकील के तौर पर बन चुकी है।


हिंदी राज भाषा है या राष्ट भाषा है,इसके बीच के अंतर को थोडा स्पष्ट करें ?
हिंदी राष्ट भाषा है और राज भाषा भी। राज भाषा होने का तात्पर्य है कि प्रत्येक सरकारी कार्य हिंदी में किया जाए और हिंदी का राष्ट भाषा होना इसके सम्मान और वर्चस्व से जुडा है। कुछ कमजोर इच्छाशक्ति वाले लोगों ने राज भाषा अधिनियम पारित करवाया जिसमें ये प्राावधान करवाया कि हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी राज भाषा  के रूप में कार्य करती रहेगी  हालांकि हकीकत ये है कि वैश्विक स्तर पर हिंदी को दूसरी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा का स्थान प्राप्त है जबकि प्रथम स्थान फ्रैंच भाषा को मिला है।

क्या कारण है कि राज भाषा होने के बावजूद हिंदी को यथोचित सम्मान  नहीे मिल पाता ?
भारत में अंग्रेजी जानने वाले कुछ प्रतिशत लोगों द्वारा हिंदी के प्रति नकारात्मक रवैया है जिसके कारण हिंदी को इसका यथोचित स्थान नहीं मिल पाता। आजकल के विद्यार्थी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग इस तर्क के साथ करते है कि यदि वो अंग्रेजी नहीं सीखेंगे तो आई आई टी व चिकित्सा जैसे उच्च शिक्षा के क्षेत्रों में नही ंजा सकेंगे क्योंकि हमारी सरकार द्वारा उच्च शिक्षा की व्यवस्था अंग्रेजी में ही की गई है।  हम अंग्रेजी को दैनिक जीवन में आधार बनाने के बजाए उसे एक भाषा के रूप में पढें । अंग्रेजी सीखने का तात्पर्य  हिंदी की उपेक्षा नहीं। ये उसी प्रकार से है जैसे अपने पडौसी की मां को पूरी इज्जत दें लेकिन इसका अर्थ अपनी मां से उपेक्षा नहीं है। बहुत से लोग मेरे बारे में ये धारणा रखते है कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती इसलिए मैं हिंदी का प्रयोग करता हूं पर वास्तविकता ये है कि सिरसा जिले के कर के सभी वकीलों में से सबसे बडा पुस्तकालय मेरे पास है जिसमें सारी पुस्तकें अंग्रेजी में है जिन्हें मैं भली-भांति पढता हंू लेकिन जब लिखता हूं तो हिंदी मैं लिखता हूं। इस बात के पीछे धारणा ये ही है कि अंग्रेजी की पुस्तकों को अवश्य पढें लेकिन अपनी सोच और विचार हिंदी में रखे।

हिंदी के वर्चस्व को कायम रखने के लिए व उसे यथोचित सम्मान देने के लिए सरकार से किस प्रकार की उपेक्षाएं की जा सकती है?
देखिये अंग्रेजी की तरफ लोग इसलिए भाग रहे है क्योंकि ये रोजगार की भाषा है। अगर हम अंग्रेजी को रोजगारउन्मुक्त कर दें अर्थात् बडी से बडी परीक्षा व व्यवसाय में हिंदी माध्यम की छूट दें तो ये हिंदी के वर्चस्व को बनाने व बढाने में मील का पत्थर साबित होगा। हिंदी हमारी राज भाषा है हमारे घर,  परिवार, समाज व देश सब जगह हिंदी का प्रयोग किया जाता है इसलिए हिंदी को जानना, समझना व सीखना बेहद आसान है। आज के समय में लोग अंग्रेजी को केवल व्यवसायिक भाषा होने के कारण अपनाते है। यदि सरकार अंग्रेजी को व्यवयसयिक भाषा के तौर पर मुक्त कर दे ंतो हिंदी को इसका यथोचित सम्मान मिल सकता है।


हिंदी दिवस पर श्रोताओं को क्या संदेश देंगे?
श्रोताओं को बस मैं यहीं कहूगां कि हम अपनी राज भाषा को सम्मान दें, इसका अधिक से अधिक प्रयोग करें।  इस बात का संकल्प अवश्य करें कि रोजमर्रा के कार्य जैसे -पहचान पत्र बनवाना है, निमंत्रण पत्र देना है,पत्र-व्यवहार करना है ये सब हिंदी में करें। हिंदी  भाषी एक दूसरे से हिंदी में वार्तालाप करें,  दिखावटी आवरण न ओढें। मैं बस सभी से यही अनुरोध करूगां कि हिंदी अपनाईये,मत शरमाईयें, आप भारतीय है, हिंदी अपनाईयें।


पानी रे पानी, तेरी अजब कहानी

बचपन में सुना था जल नहीं तो जीवन नहीं। बड़े होते होते कई बार इस बात को प्रमाणिकता के साथ सत्य भी पाया वैसे तो जल रंगहीन होता है लेकिन जब ये रंग दिखाने लगता है तो बड़े-बड़े दिग्गज इसके रंग को समझ नहीं पाते। अगर जल पीने का न मिले तो कंठ ऐसे सुख जाते है जैसे अभी प्राण निकले। जल यदि नहाने को न मिले तो बिना पसंद की सुगंध का आनंद लेना पड़ सकता है। ये तो बात हुई जल के न मिलने की। लेकिन अगर ये जरूरत से Óयादा हो जाए तो भी चैन कहां आए। अब कल की बारिश को ही लीजिए बाल गोपाल जन्म के दिवस पर मेघा तो जमकर बरस लिए। जमीं पर बरस कर उन्होंने अपना कलेजा तो हल्का कर लिया। पर एक बार भी उन्होंने यह नहीं सोचा कि कोई उनके स्वागत के लिए तैयार है भी के नहीं। अब हमारी भोली सरकार को भी क्या पता था कि बाल गोपाल के जन्म दिन की मेघा रानी भी दिवानी हो सकती है। अगर पता होता तो वो उसी तरह से, जैसे मंत्रियों के आने से पहले शहर का कुडा साफ करवाती है वैसे ही टूटी सड़कों के गड्ढों को भी भरवाकर माफ कर देती। ऐसा करने से कम से कम उनकी पोल तो न खुलती। खैर एक बात तय है कल के बरसे जल के असर से, सरकार का माथा जरूर तर हुआ होगा, किंतु फल क्या होगा, ये तो सरकार ही जाने। अब भई  सरकार है सरक-सरक कर भी चल सकती है और यदि सर (आलाकमान) चाहे तो कार की तरह दौड़ भी सकती है बाकि कार से यदि आया कि बारिश के कारण चाहे किसी की पेंट गीली हो या फिर माथा तर हो पर जलमग्न  सड़क आनंद के साथ पार करने का असली मजा वीआईपी गाडिय़ों में है। वैसे तो गुस्सैल बरखा के कारण अस्वस्थ सड़कों पर दौड़ती हुई कई स्वस्थ गाडिय़ों को हमने बहुत बार मरीज बनते देखा है पर इन वीआईपी गाडिय़ों में जाने क्या बात होती है जो ये भारी-भरकम वर्षा में भी Óयों की त्यों बनी रहती है। कल एक वीआईपी गाड़ी में बैठने का सौभाग्य हमें भी प्राप्त हुआ। मानव मन बड़ा अजीब होता है, वैसे तो Óयादातर लोगों की प्रवृति दूसरों के दु:ख में दुखी और सुख में सुखी होने वाली होती है पर बंधु कभी आप वाकई अपने मन को टटोल कर देखना जवाब कुछ अलग मिलेगा। कल बड़ी सी गाड़ी में बैठने के पश्चात जल से भरी टूटी सड़कों पर चलने वालों के दु:खों के बजाए उनको देखकर मन सोच रहा था शुक्र है हमारा तो घर तक का इंतजाम हो गया पर सड़क पर चलने वाली आम जनता का इंतजाम कौन करेगा। पानी के इस रंग के कारण सरकार के और स्वयं मन के कुछ अलग ही रंग दिखे अब भईया मन को लेगे समझाएं, जल तो यही कहाए, वाह रे पानी तेरी अजब कहानी ,तेरे रंग न जाने, दुनिया शानी, कहां है रंग, कहां है पानी।

Friday, October 29, 2010

मेरे गुरूजन तुम्हे शत्-शत् मेरा नमन

कोई कहता है कि वह ज्योति है,
सागर की सीप का मोती है,
पर मैं कहती हूं शिक्षक भी इनसान है,
भू पर रहकर भी महान है,
राह दिखाता है उन नादानों को
विद्यार्थी जिनकी पहचान है।
             बचपन की छोटी-छोटी अठखेलियां करते हुए जब एक शिशु पाठशाला की दहलीज पर अपना प्रथम कदम रखता है तो उसकी उंगली पकड़कर पहला अक्षर सीखाने से लेकर उसकी व्यक्तिगत पहचान बनने तक, एक नाम जो उसके जहन में बस जाता है, जिसका दर्जा शास्त्रों के अनुसार मां बाप से भी पहले आता है, वो होता है गुरू का। यंू तो हर किसी के जीवन में कोई न कोई व्यक्ति गुरू बनकर आता है कुछ के लिए ये गुरू शब्द उनकी जिंदगी बदल जाता है तो कुछ शायद इसे समझ नहीं पाते। एक किस्सा मेरे जीवन का, मेरी एक गुरूजन से जुड़ा जिसने जिंदगी के मायने कुछ इस तरह बदले, की जीने की राह ही बदल गई।
          विद्यालय के समय में मुझे वाद विवाद के लिए मेधावी छात्रा की फेहरिस्त में प्रथम स्थान प्राप्त था। विद्यालय में आए दिन भाषण व वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था। बहुत बार निमंत्रण अन्य विद्यालयों से भी आता था। हर बार भाषण प्रतियोगिता के लिए विद्यालय का प्रतिनिधित्व करने का आनंद ही ओर था। एक बार वाद-विवाद की राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए विद्यालय में पत्र आया। हर बार की तरह अमूमन प्रतिनिधित्व करने के लिए मैं मन में अपना नाम सोचकर प्रतियोगिता की तैयारी में जुट गई। लेकिन आश्चर्य और दुःख की घड़ी मेरे लिए वो थी जब मेरी सबसे प्रिय शिक्षिका ने मेरी बजाए एक ऐसी छात्रा का नाम अनुमोदित किया जो वाक्-अभिव्यक्ति के मामले में बहुत साधारण गुणों वाली थी। शंकाओं से भरा मन और उदास चेहरा लिए, मैं अपनी प्रिय शिक्षिका के पास पहंुच गई। मन में प्रश्न बहुत थे लेकिन पूछने की हिम्मत नहीं, और हो भी कैसे, जिसने मुझे बोलना सिखाया, प्रतियोगिता के गुर सिखायंे, मुझे आगे बढ़ने की राह दिखाई, उनके नकारात्मक रवैये से मन उद्वेलित था, पर फिर भी उन पर विश्वास की गहराई समुद्र से भी ज्यादा गहरी थी शायद यही कारण था जो उन्होंने मेरी चुपी की जुबान को भी आंखो से पढ़ लिया। मेरे बिना कुछ कहे मुझे अपने पास बुलाया और हमेशा की तरह स्नेह स्पर्श से मेरा अभिवादन किया। उनका स्नेह भरा स्पर्श मेरे लिए सदैव कुछ कर गुजरने की औचक औषधि का कार्य करता था। हमेशा की तरह उनके स्नेह के स्पर्श का अहसास तो वही था पर शायद मैं उसे महसूस नहीं कर पा रही थी। उस दिन मेरी पीठ थपथपाते हुए जो शब्द उन्होंने मुझे कहे उन शब्दों में उनका स्नेह, सीख, समर्पण सबकुछ समाया था, जिसने मेरी उदासी को छूमंतर कर दिया। उन्होंने कहा,‘‘मेरी बच्ची, तुम्हारी क्षमताओं पर मुझे किसी भी प्रकार का संदेह नहीं, तुम केवल राज्यस्तरीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय व अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार लाओगी तो वो मेरे लिए कोइ आश्चर्य नहीं होगा लेकिन तुम्हारे इस त्याग से तुम्हारी एक बहन का आत्मविश्वास इतना बढ़ सकता है जिससे वो भी जीवन में तुम्हारी तरह बहुत आगे तक जा सकेगी।‘‘ मैं उन्हें एकटक देखती रही, मेरी आंखे नम हो गई, और मैं उस पल को याद करने लगी जब एक बार मुझे भी उन्होंने इसी तरह से मौका दिया था। मेरा सोया आत्मविश्वास जगााया था। अब मन में न दुख था, न नाराजगी, अगर कुछ था तो वो थी खुशी और अपनी अध्यापिका के लिए बेइंताह इज्जत। खुशी इस बात की थी कि मैं भी शायद किसी के आत्मविश्वास बढ़ाने में भागीदार बन सकूंगी। सोच रही थी कि कितनी महान है ये अध्यापिका, जो निःस्वार्थ भाव से दूसरों के बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए सदा प्रयासरत रहती है। मां-बाप जीवन भर बच्चों के साथ रहते हैं, उन्हें हर खुशी देते हैं, पर कम से कम उन्हें ये आस तो होती है कि बच्चे बदले में, उन्हें समय आने पर वो खुशियां लौटाएंगे पर गुरू तो किसी बात की इच्छा भी नहीं रखते। उनका काम तो सिर्फ और सिर्फ देना हैं। मेरी शिक्षिका ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया। मेरी जैसी कितनी ही और लड़कियों का भी। वो आज भी अपने इस कार्य में जुटी है, जाने-अनजाने में कितनी जिंदगियां संवार रही है, इसका उन्हें स्वयं भी अंदाजा नहीं। आज उनकी और उनके दिए ज्ञान की बदौलत मैं खुद एक शिक्षिका के पद पर कार्यरत हूं पर शायद उन जैसी अध्यापिका आज भी नहीं। अपने गुरूजनों के लिए, मन की भावना को इन्हीं पंक्तियों में समेटूंगी कि-
‘गुरूजन हमारे, हम गुरूजनों के,
आपके हमारे रिश्ते हैं प्यारेे,
प्यार से हमें आजमां लेना,
अर्पण कर देंगे खुद को चरणों में तुम्हारे।

Friday, October 8, 2010