Monday, November 29, 2010

विश्वास को घात

 वर्तमान में लोगों में अविश्वास बढता जा रहा हैं। यह संकट इतना गहरा गया है कि इसने देश के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। आज वो भारत जो कभी किसी जमाने में प्यार और विश्वास के लिए एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता था। अब स्वयं अविश्वास के घेरे में है।  आज हर प्रकार से उसके विश्वास को ठेस पहुंच रही है। फिर वो चाहे सांसदों द्वारा रिश्वत लेेने का मामला हो या ऋषि सागर द्वारा मासूम बालिकाओं के यौन शोषण की बात हो और चाहे महाराज रामपाल प्रकरण का मामला ही क्यों न हो। इन सबने भारत की महान संस्कृति को तारतम्य कर उसके अस्तिव को ठेस पहुंचाई है। आज हर तरफ टूटती आशा, धोखा और विश्वासघात ही नजर आता है। जीवन में रिश्तों की अहमियत खत्म होती जा रही है। लोग अपने स्वास्थ्य को तवज्जों देते-देते मानवीय मूल्यों को नदारद करते जा रहे हैं जिसके उदाहरण प्रतिदिन टूटते रिश्तो व अविश्वास की घटनाओं से भरे समाचार-पत्रों में देख सकते हैं। हम प्रतिदिन एक लोकल समाचार पत्र में भी 15 से 20 ऐसी खबरें पढ 
सकते हैं जिसका मुख्य बिन्दु धोखा और विश्वासघात है। भाई द्वारा भाई की जान लेना, बेटे द्वारा गला घोटना, पत्नी द्वारा पति को धोखा देना जैसी अनेक खबरें समाचार-पत्रों की लीड के रुप में नजर आती है। यह बात केवल स्थानीय स्तर पर भी बढती जा रही है। फिर चाहे वो बात सासंदों द्वारा लोकतन्त्र की गरिमा पर कालिख पोतने की है या किसी स्कूल  निदेशक द्वारा मासूम बालिकाओं के यौन शोषण की हो इस प्रकार की शर्मनाक घटनाएं दिन प्रतिदिन बढती जा रही है लेकिन इनमें उनका क्या कसूर जो लोग दूसरों के प्रति अपना विश्वास कायम करते हैं। उस मासूम जनता का क्या कसूर जो अपने सांसदों पर विश्वास करके चुनती है कि वे उनके  क्षेत्र का 
विकास करेंगे और उन माता-पिता क्या कसूर जो अपनी बालिकाओं के सुनहरे भविष्य के विषय में सोचकर उन्हें विद्यालय भेजते है। सिर्फ ये ही नहीं इस प्रकार की और भी अनेक घटनाएं हैं जो हमारे चारों तरफ मधुमक्खी की तरह मण्डरा रही हैं और हमें असुरक्षित होने का अहसास दिला रही है। अब वो समय आ गया है जब मनुष्य को खुद को पहचानना होगा और अपनी स्वार्थपरता को दूर कर मानवीयता का चोला पहनना 
होगा। अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब मानव अपनी जननी पर विश्वास करना छोड देगा और जन्म लेने से भी इनकार कर देगा। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसकी दुनिया विश्वास पर टिकी है और उसके विश्वास का ऐसा दहन न हो कि दोबारा उसकी  ज्योति प्रज्वलित ही न हो पाएं अतः मानव को इस सृष्टि के अतिरिक्त को जानकर, अपनी तुच्छ इच्छाओं की बजाए रिश्तों को अधिक अहमियत देनी चाहिए और जान लेना चाहिए कि हरेक रिश्ते की बुनियाद विश्वास है और इसे घात न लगने पाएं।

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