Research


Sunday, November 28, 2010

नूतन मीडिया की चुनौतियां


मीडिया और समाज का संबंध पुरातन से चला आ रहा है। अद्यतन समाज तक आते-आते इसके स्वरूप, विस्तार, गति, प्रस्तुति सबमें तुफानी बदलाव आए है। ढोल पीट कर सूचना देने वाले युग से लेकर मोबाइल पर क्लिक करके सूचना को  दुनिया के दुसरे कोने में पहुंचाने के युग तक आते-आते  मीडिया ने व्यापक पहुंच और पैठ तो बना ली लेकिन अपनी विशेषताओं के साथ-साथ इसने अनेक विक्षिप्तताओं को भी अपने-अपने दामण में उलझा लिया है। मीडिया का नूतन स्वरूप निसंदेह चमत्कारी, तेज, आकर्षक व बहुगुणी है किन्तु इन प्रतिभाओं के बावजूद नवमाध्यम  के कारण उपजी अनेक ऐसी समस्याएं है जिनके परिणाम स्वस्थ समाज व देश के लिए अतिकारी हो सकते है। इनमें इनर्फोमेशन ओवर लोड या सूचना अतिक्रमण, डिजिटल डिवाईड, एलीनेशन या अलगाववाद तथा वर्चुअल रियल्टी अर्थात आभासी दुनिया जैसी कुछ विकट समस्याएं हमारे समक्ष है।
           वैश्विक धरातल पर बसने वाले प्रथम दुनिया के देशों के लिए इंटरनेट की पंहुच बहुत सामान्य है। ऐसे देशों में ई-डेमोक्रैसी, ई-गर्वनेंस, ई-मीडिया अर्थात ई-भोग के बहुत चुस्त उपभोक्ता है जो ई-शक्ति का निचोड कर आनंद ले रहे है। दूसरी और बात यदि भारत जैसे विकासशील देश की करें तो इन देश की पहुंच में केवल ई-शक्ति की ई ही आई है। ई के केन्द्र में जाने के लिए इन देशों को अभी एक लम्बा अरसा लगने के कयास लगाए जा सकते है। ये कयास कोई हवा में छोडे गए तीर नहीं बल्कि विकासशील देशों की परिस्थितिक भावनाओं का आधारभूत निचोड है।  ई-लिटरेसी की दौड में तीसरी दुनिया के देशों को यदि पिछडा घोषित कर दिया जाए तो निसंदेह कोई आश्चर्य नहीं होगा । परन्तु ग्लोबल धरातल पर नवमाध्यम की पहुंच की असमान सुलभता कई नवीन खतरों का आगाज करवा जाती है। जिसमें से प्रमुख है डिजिटल डिवाईड।
 पल भर में आपको पूरी दुनिया से जोड देने वाले वेब  के शुरूआती विस्तार से ही इस प्रकार की आशंकाएं जताई जा रही थी कि कही वेब मीडिया किसी डिजिटल खाई को जन्म तो नहीं दे रहा। दुनिया के देशों में नवमाध्यम की असमान पहुंच का नाम डिजिटल डिवाईड है। इसमें तकनीक और सूचना सम्पन्न लोग एक तरफ होगंे और दूसरी तरफ वे लोग जिन तक नवमाध्यमों की रोशनी नहीं पहुंची है। वेब विद्वेताओं के अनुसार इस विभाजन में तकनीक सम्पन्नता प्राप्त लोग सूचना व तकनीक विहीन समाज के लोगों को अपने नियंत्रण में रखेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि नवमाध्यमों ने तकनीक पर कब्जा कर दैनिक कार्यों की सुगमता को बढा दिया है। बस डर इतना है कि कही ये सुगमता केवल कुछ हाथों की मोहताज न बन जाए। 
एक समय था जब सूचना और सम्प्रेषण दोनों का अभाव था लेकिन तकनीकी  बयार ने नव माध्यमों के साथ विकासशील देशों में सूचनाओं की अति का भी नव आगाज किया परन्तु प्रश्न  यह है कि भारत जैसे एक अरब से अधिक आबादी वाले देश में जहां लोग रोटी के निवाले के लिए तरस रहे है  ऐसे में हर हाथ को कम्प्यूटर मिले और वो सूचना क्रांति व नव माध्यम का हिस्सा बनेगा इसका तय करना कठिन ही नही नामुमकिन है। दूसरा समाज का एक सूक्ष्म हिस्सा जो इसका उपभोग कर रहा है वो भी कुछ विकट समस्याओं का शिकार हो रहा है जो आने वाले समय में विकराल हो सकती है। इसमें से एक है वर्चुअल रियल्टी है अर्थात अभासी  दुनिया में मौजूद यथार्थ। इंटरनेट के तेज बढते कदम केवल व्यवसायिकता या समाजिकता को ही नही बल्कि  आम जीवन को भी प्रभावित कर रहे है।  
दुनियाभर के इंटरनेट उपभोक्ता आज इसके आदि हो गए है । वे इसके अत्याधिक प्रयोग के कारण काल्पिनक संसार में खो जाते है। इंटरनेट की आभासी दुनिया में खो कर वास्तिविकता से दूर हो रहे है।  वर्चुअल शोपिंग, वर्चुअल दोस्त, वर्चुअल रिश्ते, वर्चुअल-स्पेस इंटरनेट की ऐसी देन है जिसने वास्तविक आयमों को ठण्डे बस्ते में डाल दिया है। लोग इंटरनेट के इतने एडिक्ट हो जाते है कि वे अपने आस-पास की दुनिया से ही बेखबर हो जाते है। कई सर्वो के मुताबिक ज्यादातर इंटरनेट यूजर्स कई प्रकार की शारीरिक व मानसिक बीमारियों से ग्रसित रहते हैं।  तकनीक ने अभिव्यक्ति के लिए वैश्विक स्तर पर खुलामंच प्रदान किया है लेकिन ये खुलापन कई बार झगडे और मुद्दांे का अभिप्राय भी बन खडा होता है। आए दिन सोशल नेटवर्किग साईट पर होने वाले अभिव्यैक्तिक यु¬¬द्ध इसका एक स्वस्थ उदाहरण है।  ग्लोबल माध्यमों पर प्रसारित सूचनाओं का स्वर जहां वैश्विक स्तर पर गुंजता है वही इसकी सार्थकता और विश्वसनीयता का प्रश्न और भी गंभीर रूप ले हमारे सामने खडा हो जाता है। नव माध्यमों के वैश्विक विस्तार और विश्वसनीयता के साथ-साथ नियंत्रण का प्रश्न भी अहम् है। भारत सरकार ने 17 अक्टूबर 2000 को देश का पहला  संचार व सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम लागू किया। इस कानून के अनुसार इलैक्टानिक रूप से किये गए संचार व कारोबार को कानूनी मान्यता मिली। इस अधिनियम के द्वारा कम्प्यूटर जगत में होने वाले अपराध को भी रोकने के भी कई प्रावधान किये गए। इस कानून के तहत किसी भी प्रकार की अश्लील तस्वीर देखना व छोडना गैर कानूनी  माना । इंटरनेट के द्वारा किसी की सूचनाओं को चुराना, नष्ट करना अपराध है। रोक लगाना तो ठीक हैै पर सवाल ये है कि इंटरनेट एक ग्लोबल माध्यम है। भारतीय कानून की परिधि भारतीय सीमा तक कार्य करती है लेकिन आपके कम्प्युटर से गुप्त सुचना उडाने वाले को भारत आकर यह करने की आवश्यकता नहीं, दूसरे देश में बैठ कर साइट हैक करने के मामले दिन प्रति दिन बढते जा रहे है। इस प्रकार के तमाम मामले दिन   प्रतिदिन नवमाध्यम की प्रयोगात्मक असुरक्षा का अहसास करवाते है।
  नव माध्यम के यूजर बन कर हम असुरक्षा के घेरे में तो आ जाते है। असुरक्षा सिर्फ हमारे डाटा के चोरी होने की ही नहीं बल्कि बाल समाज पर हो रहे इसके खतरनाक प्रभावों की भी है। आज बच्चे इसके एडिक्ट होकर अपना शारीरिक व मानसिक नुकसान कर रहे है । इसके अलावा वे विभिन्न साईटों  को हैक करके साइबर क्राइम जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके है। घरों में इंटरनेट होने से बालमन का सम्पर्क पोर्न सामग्री से हो रहा है जो उनके भविष्य के लिए अत्यंत घातक है। 
इसमें किंचितमात्र संदेह नही कि वर्तमान में नूतन मीडिया की अपार संभावानाओं ने तकनीकी द्वार तो खोल दिये है कम्प्यूटर व इंटरनेट क्रांति के आगाज ने रोजगार , शिक्षा, सम्प्रेषण, शोध प्रत्येक क्षेत्र को सुलभ बना दिया है लेकिन सुलभता के सही मायने तभी निर्धारित किये जा सकते है व जाएगें जब इसकी पहुंच आम जन तक होगी। आम जन से तात्पर्य ग्रामीण अंचल में बसे एक अनपढ से है। अपनी भावी तकनीक पर विचार करे तो बहुत सारे प्रश्न जहन में कोतुहल मचा जाते है। जैसे नवल माध्यम का प्रयोग करने के लिए क्या किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता है। क्या इंटरनेट का प्रयोगकर्ता आभासी दुनिया में इतना तो नहीं खो जाएगा कि अपनी वास्तविक दुनिया को ही भूल जाए। एक अन्य प्रश्न यह भी है कि वैश्विक आबादी का एक बडा तबका जो इंटरनेट उपभोक्ता नहीं है वो किस प्रकार से इसका हिस्सा बन सकता है। ये कुछ चौनुतियां जो वैश्विक स्तर पर है पर भारत के संदर्भ में भी जुडी हुई है जिन पर विचार करने की आवश्यकता है।