Wednesday, November 3, 2010

पानी रे पानी, तेरी अजब कहानी

बचपन में सुना था जल नहीं तो जीवन नहीं। बड़े होते होते कई बार इस बात को प्रमाणिकता के साथ सत्य भी पाया वैसे तो जल रंगहीन होता है लेकिन जब ये रंग दिखाने लगता है तो बड़े-बड़े दिग्गज इसके रंग को समझ नहीं पाते। अगर जल पीने का न मिले तो कंठ ऐसे सुख जाते है जैसे अभी प्राण निकले। जल यदि नहाने को न मिले तो बिना पसंद की सुगंध का आनंद लेना पड़ सकता है। ये तो बात हुई जल के न मिलने की। लेकिन अगर ये जरूरत से Óयादा हो जाए तो भी चैन कहां आए। अब कल की बारिश को ही लीजिए बाल गोपाल जन्म के दिवस पर मेघा तो जमकर बरस लिए। जमीं पर बरस कर उन्होंने अपना कलेजा तो हल्का कर लिया। पर एक बार भी उन्होंने यह नहीं सोचा कि कोई उनके स्वागत के लिए तैयार है भी के नहीं। अब हमारी भोली सरकार को भी क्या पता था कि बाल गोपाल के जन्म दिन की मेघा रानी भी दिवानी हो सकती है। अगर पता होता तो वो उसी तरह से, जैसे मंत्रियों के आने से पहले शहर का कुडा साफ करवाती है वैसे ही टूटी सड़कों के गड्ढों को भी भरवाकर माफ कर देती। ऐसा करने से कम से कम उनकी पोल तो न खुलती। खैर एक बात तय है कल के बरसे जल के असर से, सरकार का माथा जरूर तर हुआ होगा, किंतु फल क्या होगा, ये तो सरकार ही जाने। अब भई  सरकार है सरक-सरक कर भी चल सकती है और यदि सर (आलाकमान) चाहे तो कार की तरह दौड़ भी सकती है बाकि कार से यदि आया कि बारिश के कारण चाहे किसी की पेंट गीली हो या फिर माथा तर हो पर जलमग्न  सड़क आनंद के साथ पार करने का असली मजा वीआईपी गाडिय़ों में है। वैसे तो गुस्सैल बरखा के कारण अस्वस्थ सड़कों पर दौड़ती हुई कई स्वस्थ गाडिय़ों को हमने बहुत बार मरीज बनते देखा है पर इन वीआईपी गाडिय़ों में जाने क्या बात होती है जो ये भारी-भरकम वर्षा में भी Óयों की त्यों बनी रहती है। कल एक वीआईपी गाड़ी में बैठने का सौभाग्य हमें भी प्राप्त हुआ। मानव मन बड़ा अजीब होता है, वैसे तो Óयादातर लोगों की प्रवृति दूसरों के दु:ख में दुखी और सुख में सुखी होने वाली होती है पर बंधु कभी आप वाकई अपने मन को टटोल कर देखना जवाब कुछ अलग मिलेगा। कल बड़ी सी गाड़ी में बैठने के पश्चात जल से भरी टूटी सड़कों पर चलने वालों के दु:खों के बजाए उनको देखकर मन सोच रहा था शुक्र है हमारा तो घर तक का इंतजाम हो गया पर सड़क पर चलने वाली आम जनता का इंतजाम कौन करेगा। पानी के इस रंग के कारण सरकार के और स्वयं मन के कुछ अलग ही रंग दिखे अब भईया मन को लेगे समझाएं, जल तो यही कहाए, वाह रे पानी तेरी अजब कहानी ,तेरे रंग न जाने, दुनिया शानी, कहां है रंग, कहां है पानी।

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