आपको हिन्दी भाषा में कार्य करने की प्रेरणा कहां से मिली ?
हरियाणा प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन 1967 में स्थापित हुआा था। उस समय बनारसी दास गुप्ता इसके अध्यक्ष थे । 1974 में इस सम्मेलन की शाखा सिरसा में स्थापित हुई । मैं तब से ही हिंदी भाषा से विशेष रूप से जुडा हूं। वैसे तो विद्यालय समय से ही मेरा हिंदी भाषा के प्रति मेरा खास लगाव था लेकिन हिंदी को व्यवसायिक तौर पर अपनाने का फैसला मैंने इस संगठन से जुडने के बाद लिया। शुरूआती दौर में काफी दिक्कतों का सामना करना पडा लेकिन प्रबल इच्छाशक्ति और दृढ निश्चय के बल पर आज मेरी पहचान मेरे नाम के बजाए हिंदी में कार्य करने वाले वकील के तौर पर बन चुकी है।
हिंदी राज भाषा है या राष्ट भाषा है,इसके बीच के अंतर को थोडा स्पष्ट करें ?
हिंदी राष्ट भाषा है और राज भाषा भी। राज भाषा होने का तात्पर्य है कि प्रत्येक सरकारी कार्य हिंदी में किया जाए और हिंदी का राष्ट भाषा होना इसके सम्मान और वर्चस्व से जुडा है। कुछ कमजोर इच्छाशक्ति वाले लोगों ने राज भाषा अधिनियम पारित करवाया जिसमें ये प्राावधान करवाया कि हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी राज भाषा के रूप में कार्य करती रहेगी हालांकि हकीकत ये है कि वैश्विक स्तर पर हिंदी को दूसरी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा का स्थान प्राप्त है जबकि प्रथम स्थान फ्रैंच भाषा को मिला है।
क्या कारण है कि राज भाषा होने के बावजूद हिंदी को यथोचित सम्मान नहीे मिल पाता ?
भारत में अंग्रेजी जानने वाले कुछ प्रतिशत लोगों द्वारा हिंदी के प्रति नकारात्मक रवैया है जिसके कारण हिंदी को इसका यथोचित स्थान नहीं मिल पाता। आजकल के विद्यार्थी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग इस तर्क के साथ करते है कि यदि वो अंग्रेजी नहीं सीखेंगे तो आई आई टी व चिकित्सा जैसे उच्च शिक्षा के क्षेत्रों में नही ंजा सकेंगे क्योंकि हमारी सरकार द्वारा उच्च शिक्षा की व्यवस्था अंग्रेजी में ही की गई है। हम अंग्रेजी को दैनिक जीवन में आधार बनाने के बजाए उसे एक भाषा के रूप में पढें । अंग्रेजी सीखने का तात्पर्य हिंदी की उपेक्षा नहीं। ये उसी प्रकार से है जैसे अपने पडौसी की मां को पूरी इज्जत दें लेकिन इसका अर्थ अपनी मां से उपेक्षा नहीं है। बहुत से लोग मेरे बारे में ये धारणा रखते है कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती इसलिए मैं हिंदी का प्रयोग करता हूं पर वास्तविकता ये है कि सिरसा जिले के कर के सभी वकीलों में से सबसे बडा पुस्तकालय मेरे पास है जिसमें सारी पुस्तकें अंग्रेजी में है जिन्हें मैं भली-भांति पढता हंू लेकिन जब लिखता हूं तो हिंदी मैं लिखता हूं। इस बात के पीछे धारणा ये ही है कि अंग्रेजी की पुस्तकों को अवश्य पढें लेकिन अपनी सोच और विचार हिंदी में रखे।
हिंदी के वर्चस्व को कायम रखने के लिए व उसे यथोचित सम्मान देने के लिए सरकार से किस प्रकार की उपेक्षाएं की जा सकती है?
देखिये अंग्रेजी की तरफ लोग इसलिए भाग रहे है क्योंकि ये रोजगार की भाषा है। अगर हम अंग्रेजी को रोजगारउन्मुक्त कर दें अर्थात् बडी से बडी परीक्षा व व्यवसाय में हिंदी माध्यम की छूट दें तो ये हिंदी के वर्चस्व को बनाने व बढाने में मील का पत्थर साबित होगा। हिंदी हमारी राज भाषा है हमारे घर, परिवार, समाज व देश सब जगह हिंदी का प्रयोग किया जाता है इसलिए हिंदी को जानना, समझना व सीखना बेहद आसान है। आज के समय में लोग अंग्रेजी को केवल व्यवसायिक भाषा होने के कारण अपनाते है। यदि सरकार अंग्रेजी को व्यवयसयिक भाषा के तौर पर मुक्त कर दे ंतो हिंदी को इसका यथोचित सम्मान मिल सकता है।
हिंदी दिवस पर श्रोताओं को क्या संदेश देंगे?
श्रोताओं को बस मैं यहीं कहूगां कि हम अपनी राज भाषा को सम्मान दें, इसका अधिक से अधिक प्रयोग करें। इस बात का संकल्प अवश्य करें कि रोजमर्रा के कार्य जैसे -पहचान पत्र बनवाना है, निमंत्रण पत्र देना है,पत्र-व्यवहार करना है ये सब हिंदी में करें। हिंदी भाषी एक दूसरे से हिंदी में वार्तालाप करें, दिखावटी आवरण न ओढें। मैं बस सभी से यही अनुरोध करूगां कि हिंदी अपनाईये,मत शरमाईयें, आप भारतीय है, हिंदी अपनाईयें।
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